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वाच्य व्याकरण: भाषा के क्रियात्मक पहलुओं का अध्ययन

 वाच्य व्याकरण: भाषा के क्रियात्मक पहलुओं का अध्ययन


भाषा विशेष रूप से क्रियाओं के माध्यम से व्यक्ति के विचारों, अनुभवों और क्रियाओं को साझा करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। वाच्य व्याकरण उन क्रियाओं के रचनात्मक, वाचनात्मक और अर्थात्मक पहलुओं का अध्ययन करता है जो भाषा में होती हैं। इसके माध्यम से हम किसी क्रिया के प्रयोग के अनुसार उसके अर्थ और संवादित परिणाम को समझ सकते हैं।

वाच्य क्या है?

वाच्य वह भाग होता है जो किसी क्रिया के प्रयोग के आधार पर उसके रचनात्मक, वाचनात्मक, और अर्थात्मक पहलुओं को प्रकट करता है। वाच्य के आधार पर क्रिया के प्रयोग के साथ उसका रचनात्मक, वाचनात्मक और अर्थात्मक अर्थ स्थापित किया जाता है।

वाच्य व्याकरण के प्रकार:

  1. कर्तृवाच्य (Active Voice): इसमें क्रिया का कर्ता क्रियापद के साथ संधि के बिना प्रयोग होता है। यह वह वाच्य होता है जिसमें क्रिया को व्यक्ति या वस्तु के क्रियापद के साथ प्रकट किया जाता है। उदाहरण: "राम ने गीता पढ़ी।"

  2. कर्मवाच्य (Passive Voice): इसमें क्रिया का प्रयोग कर्ता के स्थान पर कारक के क्रियापद के साथ होता है। यह वह वाच्य होता है जिसमें क्रिया के क्रियापद के साथ कारक को प्रकट किया जाता है। उदाहरण: "गीता राम द्वारा पढ़ी गई।"

  3. भाववाच्य (Reflexive Voice): इसमें क्रिया का प्रयोग कर्ता के साथ 'स्व' के साथ होता है। यह वह वाच्य होता है जिसमें क्रिया का प्रयोग किसी क्रिया के अपने को प्रकट करने के लिए किया जाता है। उदाहरण: "राम ने खुद को देखा।"

सारांश

वाच्य व्याकरण भाषा के क्रियात्मक पहलुओं को समझने और सही ढंग से प्रयोग करने में मदद करता है। इसका अध्ययन हमें किसी क्रिया के प्रयोग के अनुसार उसके अर्थ और संवादित परिणाम को समझने में सहायक होता है।

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